रुख्सार

निशा रुख्सार लिए आती है

एक कशिश दबे अरमान जगाती है,

हसरतों को देके अल्फाज़ फिर

भावनाएँ मुझसे कुछ लिखवाती है ।

यूँ चलते रहे हाथ थाम के वो

जैसे बरखा धरती भिगाती है,

हो जाए नम यह प्रकृति जब

लगती धूप इसे सुखाती है ।

ली नहीं उपमा मैंने पंछियों से कभी

सीख कर उड़ान जो उड़ जाती है,

उन पुष्प सरीखे मैंने लिखा है तूझे

जो गिरकर भी एक पौधा उगाती है ।

एहसास-ए-मोहब्बत तुझमें होगा कितना

कोई और खुशी मुझे नहीं सुहाती है,

दो पूरक पत्थर हम हैं यूँ प्रेयसी

कि प्यार की रगड़ चिंगारी जगाती है ।

मुकम्मल होगी हर ख्वाहिश अपनी

तू मेरे लिए यूँ दिल धड़काती है,

आ कर तेरी बाहों में प्रेयसी

हर धड़कन मेरी संवर जाती है ।

निशा रुख्सार लिए आती है

एक कशिश दबे अरमान जगाती है,

हसरतों को देके अल्फाज़ फिर

भावनाएँ मुझसे कुछ लिखवाती है ।।

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