निशा रुख्सार लिए आती है
एक कशिश दबे अरमान जगाती है,
हसरतों को देके अल्फाज़ फिर
भावनाएँ मुझसे कुछ लिखवाती है ।
यूँ चलते रहे हाथ थाम के वो
जैसे बरखा धरती भिगाती है,
हो जाए नम यह प्रकृति जब
लगती धूप इसे सुखाती है ।
ली नहीं उपमा मैंने पंछियों से कभी
सीख कर उड़ान जो उड़ जाती है,
उन पुष्प सरीखे मैंने लिखा है तूझे
जो गिरकर भी एक पौधा उगाती है ।
एहसास-ए-मोहब्बत तुझमें होगा कितना
कोई और खुशी मुझे नहीं सुहाती है,
दो पूरक पत्थर हम हैं यूँ प्रेयसी
कि प्यार की रगड़ चिंगारी जगाती है ।
मुकम्मल होगी हर ख्वाहिश अपनी
तू मेरे लिए यूँ दिल धड़काती है,
आ कर तेरी बाहों में प्रेयसी
हर धड़कन मेरी संवर जाती है ।
निशा रुख्सार लिए आती है
एक कशिश दबे अरमान जगाती है,
हसरतों को देके अल्फाज़ फिर
भावनाएँ मुझसे कुछ लिखवाती है ।।
..S
खूबसूरत कविता।👌👌
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Shukriya sir
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