लोरी

सजा ली है बाँहें मैंने

तुझको सुलाने की खातिर,

पुकार है तुझको ऐ प्रेयसी

वक्त न बन जाए कहीं शातिर ।

आलिंगन करके तेरा मुझमें

बाहों की ओढ़नी फैला दूँ मैं,

केशों में फेर हाथ अपने

सुकून से तुझे सहला दूँ मैं ।

कुछ बातें हो फिर मीठी सी

कुछ संग खुशियाँ खेलें हम,

बिखरे मुस्कान चांदनी में

और सारी बातें कह लें हम ।

फिर मेल करा के दिल से दिल का

होठों से पलक मिला लूँ मैं,

चेहरा छुपा के सीने में

एक प्यारी नींद पिला दूँ मैं ।

हो जाए दूर सारी व्यथा

मेरे गीत-सुरों की ताकत से,

और चढ़ने लगे इश्क परवान

हमारे होठों की हिमाकत से ।

हर निशा सुंदर बीते यूँ

ऐ प्रेयसी हमारे एहसासों में,

तुम पलकें मूंद सो जाओ

मैं सोऊँ तेरी लिबासों में ।।

..S

2 thoughts on “लोरी

  1. सजा ली है बाँहें मैंने

    तुझको सुलाने की खातिर,

    पुकार है तुझको ऐ प्रियसी

    वक्त न बन जाए कहीं शातिर ।

    वाह—-/ खूबसूरत कविता।👌👌👌

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